कोई भी काम कल या बाद के लिए न छोड़ें
बहुत समय पहले की बात है एक वन में एक ऋषि रहा करते थे उनके दो मुख्य शिष्य थे I उनके नाम सम्यक और अरण्यक थे और दोनों ही बहुत प्रभाव शाली ,सर्वकार्य निपुण भी थे I ये दोनों शिष्य अपने गुरु के परम आज्ञाकारी भी थे Iएक दिन ऋषि के मन में विचार आया की मेरी तो अब उम्र हो गयी है और आश्रम के कार्यों का निष्पादन वैसे भी ये दोनों शिष्योंके ऊपर ही रहता है तो क्यों न मै इन्ही में से किसी योग्य शिष्य को अपना उत्तराधिकारी बनाकर मै संन्यास ले लूँ और अपनी आखिरी परम तपस्या को चला जाऊं I तब उन्होंने इस उत्तम विचार को परिणित करने के लिए एक प्रतियोगिता का आयोजन किया और सबको सूचना दे दी की इस प्रतियोगिता में जो विजयी होगा वही मेरा उत्तराधिकारी होगा I अब सम्यक और अरण्यक दोनों को बुलाया गया और उनको प्रतियोगिता के नियम के तौर पर बताया गया की उनको प्रतिदिन अपनर शरीर की लम्बाई के आधे हिस्से के बराबर अलग अलग जगहों पर गड्ढा खोदना है I इस प्रकार उन्हें 10 दिन में अपने शरीर की लम्बाई के 5 गुने के के बराबर गड्ढा खोद लेना है I 10 दिन के बाद ऋषि स्वयं गड्ढों को देखेंगे जिसका गड्ढा अपने शरीर के 5 गुना के बराबर होगा उसी को ऋषि अपना उत्तराधिकारी बनायेंगे I जिसका गड्ढा कम या अधिक पाया जायगा वह प्रतियोगिता में हार जायेगा I
अरण्यक ,सम्यक से शारीरिक रूप से अधिक बलशाली था I दोनों ने प्रतियोगिता में बढ चढ़ कर हिस्सा लिया I सम्यक और अरण्यक दोनों शिष्यों ने गड्ढा खोदना प्रारंभ कर दिया I पहले दिन ही अरण्यक ,सम्यक से दो गुना अधिक गड्ढा खोद दिया जबकि सम्यक अपने शरीर के आधे हिस्से के बराबर ही खोदा I दूसरे दिन पुनः सम्यक ने पहले दिन जैसा ही गड्ढा खोदा ,वही अरण्यक ने यह सोचकर की उसका आज का कार्य पूर्ण है इसलिए उसने बिश्राम किया Iतीसरे दिन पुनः सम्यक ने पहले दिन की तरह ही गड्ढा खोदा ,परन्तु अरण्यक पुनः यह सोचकर की इतना कार्य तो मै एक ही दिन में कर लूँगा वह विश्रामकरने लगा Iचौथे दिन पुनः सम्यक पहले की तरह अपने हिस्से का कार्य किया परन्तु अरण्यक यह सोचकर की इतना कार्य तो मै एक दिन में कर लूँगा ,विश्राम करता रहा I इसी प्रकार आठ दिन बीत गए I परन्तु अरण्यक का गड्ढा अपने शरीर के 2 गुने के बराबर भी नहीं खुदा था और सम्यक का गड्ढा उसके अपने शरीर के 4 गुने के बराबर खुद चूका था I तब अरण्यक ने नौवें दिन खूब मेहनत करने का निश्चय लेकर कार्य करना शुरू किया उसने पूरे दिन ,पूरी रात गड्ढा खोदा ,10 वें दिन भी कार्य करता रहा परन्तु गड्ढा उसके शरीर के 5 गुना के बराबर नहीं खुद पाया I वहीँ सम्यक का गड्ढा 10 वें दिन उसके शरीर के 5 गुने के बराबर हो गया था I
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उसी 10 वें दिन ऋषि दोनों का निरिक्षण करने आये और सम्यक को विजयी घोषित कर दिया I अरण्यक को यह समझाया की तुम बलशाली होते हुए भी प्रतियोगिता हार गए क्योंकि तुम अपना आज का कार्य कल पर टालते गए I इस प्रकार सम्यक को ऋषि ने अपना उत्तराधिकारी बना दिया और अरण्यक को आश्रम के दुसरे कार्यों में लगा दिया I
तो मित्रों यदि अरण्यक भी सम्यक की तरह प्रतिदिन अपना कार्य करता रहता तो वह भी प्रतियोगिता में विजयी हो जाता I परन्तु अरण्यक ने ऐसा नहीं किया I
इसलिए मैं तो यही कहूँगा की हमें अपने जीवन में कोई भी काम कल पर नहीं टालना चाहिए I क्योंकि टाला हुआ थोडा थोडा काम कई दिनों के बाद बहुत अधिक हो जाता है और उसे हम समयानुसार पूरा नहीं कर पाते और हमे नुक्सान उठाना पड़ता है I इसलिए अपने सारे काम वर्तमान में ही करने का प्रयास करें I बाद में या कल पर टालने का प्रयास न करें I
bahut badiya story and sandesh sir ji,
ReplyDeletei agree with you
thanks sir for appreciation
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