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Shraadh kaise karen in hindi



श्राद्ध कैसे करें
हिन्दू धर्म के अनुसार किसी पूर्वज की मृत्यु के बाद श्राद्ध करना बहुत आवश्यक माना जाता है। हिन्दू धर्म के मान्यतानुसार अगर किसी मनुष्य का विधिपूर्वक श्राद्ध और तर्पण ना किया जाए तो उसे उसकी आत्मा को इस लोक से मुक्ति नहीं मिलती और वह प्रेत के रूप में इस संसार में ही रह जाता है। 
 

पितृ पक्ष क्यों महत्त्व रखता है
पुराणों के अनुसार देवताओं की पूजा
करने से पहले मानव को अपने पूर्वजों को की पूजा करना चाहिए।  ज्योतिष के अनुसार भी पितृ दोष को सबसे जटिल कुंडली दोषों में से एक माना जाता है। पितरों की शांति के लिए हर वर्ष भाद्रपद शुक्ल पूर्णिमा से आश्विन कृष्ण अमावस्या तक के काल को पितृ पक्ष श्राद्ध होते हैं। मान्यता है कि इस दौरान कुछ समय के लिए यमराज पितरों को आजाद कर देते हैं ताकि वह अपने परिजनों से श्राद्ध ग्रहण कर सकें।
पितृ पक्ष श्राद्ध 2017
वर्ष 2017 में पितृ पक्ष श्राद्ध की तिथियां निम्न हैं:
तिथि
दिन
श्राद्ध तिथियाँ


06 सितंबर
बुधवार
पूर्णिमा श्राद्ध / प्रतिपदा तिथि का श्राद्ध
(एक साथ)
07 सितंबर
गुरुवार
द्वितीया तिथि का श्राद्ध
08 सितंबर
शुक्रवार
तृतीया तिथि का श्राद्धश्राद्ध  
09 सितंबर
शनिवार
चतुर्थी तिथि का श्राद्ध 
10 सितंबर
रविवार
पंचमी तिथि का श्राद्ध
11 सितंबर
सोमवार
षष्ठी  तिथि का श्राद्ध
12 सितंबर
मंगलवार
सप्तमी तिथि का श्राद्ध
13 सितंबर
बुधवार
अष्टमी तिथि का श्राद्ध
14 सितंबर
गुरुवार
नवमी तिथि का श्राद्ध
15 सितंबर
शुक्रवार
दशमी तिथि का श्राद्ध
16 सितंबर
शनिवार
एकादशी तिथि का श्राद्ध
 17 सितंबर
रविवार
द्वादशी तिथि का श्राद्ध / त्रयोदशी तिथि का श्राद्ध
(एक साथ)
18 सितंबर
सोमवार
 चतुर्दशी तिथि का श्राद्ध
19 सितंबर
मंगलवार
अमावस्या  सर्वपितृ श्राद्ध (सभी के लिए )

क्या है श्राद्ध  
ब्रह्म पुराण के अनुसार कोई भी वस्तु जो एक उपयुक्त समय अथवा स्थान पर पितरों के नाम उपयुक्त विधि द्वारा ब्राह्मणों को श्रद्धा पूर्वक दिया जाए वह श्राद्ध कहलाता है। श्राद्ध के माध्यम से पितरों को तृप्ति के लिए भोजन पहुंचाया जाता है। पिण्ड रूप में पितरों को दिया गया भोजन श्राद्ध का अहम हिस्सा होता है।


श्राद्ध देना, क्यों आवश्यक है
मान्यता के अनुसार अगर पितर रुष्ट हो जाए तो मानव को जीवन में कई समस्याओं का सामना करना पड़ता है। पितरों की अशांति के कारण धन हानि और संतान पक्ष से समस्याओं का भी सामना करना पड़ता है। संतान-हीनता के मामलों में ज्योतिषी पितृ दोष को अवश्य देखते हैं। ऐसे लोगों को पितृ पक्ष के दौरान श्राद्ध अवश्य करना चाहिए।

 श्राद्ध में क्या क्या दिया जा सकता है
श्राद्ध में तिल, चावल, जौ आदि को अधिक महत्त्व दिया जाता है। साथ ही पुराणों में इस बात का भी जिक्र है कि श्राद्ध का अधिकार केवल योग्य ब्राह्मणों को है। श्राद्ध में तिल और कुशा का सर्वाधिक महत्त्व होता है। श्राद्ध में पितरों को अर्पित किए जाने वाले भोज्य पदार्थ को पिंडी रूप में अर्पित करना चाहिए। श्राद्ध का अधिकार पुत्र, भाई, पौत्र, प्रपौत्र समेत महिलाओं को भी होता है। 


 कौओं का महत्व ,श्राद्ध में
कौए को पितरों का रूप माना जाता है। मान्यता है कि श्राद्ध ग्रहण करने के लिए हमारे पितर कौए का रूप धारण कर नियत तिथि पर दोपहर के समय हमारे घर आते हैं। अगर उन्हें श्राद्ध नहीं मिलता तो वह रुष्ट हो जाते हैं। इस कारण श्राद्ध का प्रथम अंश कौओं को दिया जाता है।

किस तिथि कौन सा श्राद्ध करना चाहिए 
आसान शब्दों में समझा जाए तो श्राद्ध दिवंगत परिजनों को उनकी मृत्यु की तिथि पर श्रद्धापूर्वक याद किया जाना है। अगर किसी परिजन की मृत्यु प्रतिपदा को हुई हो तो उनका श्राद्ध प्रतिपदा के दिन ही किया जाता है। इसी प्रकार अन्य दिनों में भी ऐसा ही किया जाता है। इस विषय में कुछ विशेष मान्यता भी है जो निम्न हैं: 
·         पिता का श्राद्ध अष्टमी के दिन
·         माता का नवमी के दिन
·          जिन परिजनों की अकाल मृत्यु हुई हो यानि किसी दुर्घटना या आत्महत्या के कारण हुई हो उनका श्राद्ध चतुर्दशी के दिन
·          साधु और संन्यासियों का श्राद्ध द्वाद्वशी के दिन
·          जिन पितरों के मरने की तिथि याद नहीं है, उनका श्राद्ध अमावस्या के दिन किया जाता है।  इस दिन को सर्व पितृ श्राद्ध कहा जाता है। 

श्राद्ध विधि
गरुड़ पुराण के अनुसार पिण्ड दान या तर्पण हमेशा एक सुयोग्य पंडित द्वारा ही कराना चाहिए। उचित मंत्रों और योग्य ब्राह्मण की देखरेख में किया गया श्राद्ध सर्वोत्तम होता है। इस दिन ब्राह्मणों और गरीबों को दान अवश्य करना चाहिए। साथ पशु-पक्षियों (विशेषकर गाय, कुत्ते या कौवे) को भोजन कराना चाहिए।

पितरों का श्राद्ध मृत्यु तिथि पर ही करना चाहिए लेकिन अगर यह ना मालूम हो तो आश्विन अमावस्या के दिन सर्वपितृ श्राद्ध योग होता है, इस दिन को शुभ मानकर पितरों को श्राद्ध अर्पित करना चाहिए।

पितरों का श्राद्ध अगर गया या गंगा नदी के किनारे किया जाए तो सर्वोत्तम होता है। ऐसा ना होने पर जातक घर पर भी श्राद्ध कर सकते हैं। पितृ पक्ष के दौरान जिस दिन पूर्वजों की मृत्यु की तिथि हो उस दिन व्रत करना चाहिए। इस दिन खीर और अन्य कई पकवान बनाने चाहिए।

 दोपहर के समय पूजा शुरु करनी चाहिए। अग्निकुंड में अग्नि जलाकर या उपला जलाकर हवन करना चाहिए। इसके बाद ब्राह्मण या योग्य पंडित की सहायता से मंत्रोच्चारण करने चाहिए। पूजा के बाद जल से तर्पण करना चाहिए। इसके बाद गाय, काले कुत्ते और कौए के लिए ग्रास (उनका हिस्सा) निकाल देना चाहिए। इन्हें भोजन देते समय अपने पितरों का ध्यान करना चाहिए और मन ही मन उनसे निवेदन करना चाहिए कि आप आएं और यह श्राद्ध ग्रहण करें।

पशुओं को भोजन देने के बाद तिल, जौ, कुशा, तुलसी के पत्ते, मिठाई और अन्य पकवान ब्राह्मण को परोस कर उन्हें भोजन कराना चाहिए। भोज कराने के बाद ब्राह्मण को दान अवश्य देना चाहिए।

 मान्यता है कि जो व्यक्ति नियमपूर्वक श्राद्ध करता है वह पितृ ऋण से मुक्त हो जाता है। पितृ श्राद्ध पक्ष में किए गए दान और श्राद्ध से पितर प्रसन्न होते हैं और जातक को सदैव स्वस्थ, समृद्ध और खुशहाल  होने का आशीर्वाद देते हैं।

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